नई पुस्तकें >> खण्डहरों के बीच खण्डहरों के बीचए अरविंदाक्षन
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"**अरविन्दाक्षन की कविताएँ : मानवीय जिजीविषा और सत्य की खोज**"
श्री अरविंदाक्षन के बारहवें काव्य संग्रह की कविताएँ विषय कण्टेंट की विविधता से समृद्ध हैं। उनके कथ्य बहुआयामिक एवं सुरुचिपूर्ण हैं। उनकी कविताओं में मानवीय मूल्यों की उष्मा है, सम्वेदनाओं का तंत्र है और व्यर्थ की बयानबाजियां नहीं हैं। वे सामयिक विषयों से लेकर सांदर्भिक विषयों से भरपूर हैं। ‘खजुराहो के बीच’ शीर्षक कविता में वे अतीत की पृष्ठभूमि में वर्तमान को आख्यायित करते नजर आते हैं और वे पाते है कि आज भी क्या बदला है। दुःखों के वही पुराने कारण हैं जिन्होंने धरती पर मनुष्य को कभी चैन से रहने नहीं दिया-
प्रथम दृष्टया उनकी कविताओं को पढ़ते हुए इसका आभास ही नहीं होता कि वे अहिन्दीभाषी कवि हैं।
अरविदांक्षन की इन कविताओं में भाषिक सौन्दर्य नहीं अपितु सत्य के अन्वेषण की सरलता तलाश की जानी चाहिए। उनकी कविता में कहानियाँ भरी पड़ी हैं बल्कि यह कहना चाहिए कि वे कहानीमय कविता पाठकों के समक्ष परोसते हैं ताकि पाठकों को यह अफसोस न हो कि कोई बात कहने से रह गयी है।
वे मनुष्य की जिजीविषा के पक्षधर कवि हैं। सपने देखने का अधिकार हर मनुष्य को है। ‘उनकी गाड़ी चलती रहती है’ शीर्षक कविता में वे इस तथ्य की ओर इंगित करते हैं कि तमाम दुःखों की वास्तविकताओं के बावजूद सुखी होने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती ।
सच कहें तो पाण्डित्य के प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि परती के परिजनों के परोपकार के महत्व को रेखांकित करने वाले कवि हैं श्री अरिंदाक्षन।
– अशोक शाह
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